मौलिक अधिकार(Fundamental Rights)
भूमिका (Introduction)
भारत का संविधान
नागरिकों को विस्तृत मौलिक अधिकार प्रदान करता है। अधिकारों का वर्णन संविधान के
भाग-3 में किया गया है । यह अधिकार न केवल नागरिकों के
विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं बल्कि उनके कल्याण तथा सम्मान की भी रक्षा करते हैं ।
इन अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्राप्त तथा उन्हें न्यायालय के माध्यम से
लागू भी किया जा सकता है। सरकार द्वारा इन अधिकारों में परिवर्तन केवल संविधान में
संशोधन द्वारा ही किया जा सकता है। सरकार को इन अधिकारों पर उचित प्रतिबंध लगाने
का अधिकार है परंतु यह निश्चित करने का अधिकार न्यायपालिका के पास है कि यह
प्रतिबंध उचित है अथवा नहीं।
मौलिक अधिकारों की आवश्यकता तथा उनका महत्व (Need and Importance of Fundamental Rights)
मौलिक अधिकार
सरकार के हस्तक्षेप से नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं तथा कार्यपालिका
व विधायिका पर अंकुश लगाते हैं। मौलिक अधिकारों को संविधान में जोडे जाने का मुख्य
उद्देश्य देश में कानून का शासन लागू करना है। मौलिक अधिकारो के महत्व की व्याख्या करते हुए
न्यायाधीश भगवती ने मेनका गांधी बनाम भारतीय संघ के मामले में कहा था "यह मौलिक अधिकार उन मौलिक मूल्यों को प्रतिविम्बित करते हैं
जो वैदिक काल से चले आ रहे हैं तथा जिसका पालन जनता करती आ रही है। उनका मुख्य
उद्देश्य व्यक्ति के सम्मान की रक्षा करना तथा ऐसी परिस्थितियां प्रदान करना है
जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सका"
मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण (Classification of Fundamental Rights)
प्रारंभ में
संविधान ने सात प्रकार के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया। परंतु 1979 में किए गए 44वें संशोधन
द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिए जाने के पश्चात्
इसकी संख्या 6 हो गई।
वह 6 मौलिक अधिकार इस प्रकार हैं
1. समानता का अधिकार, 2. स्वतन्त्रता का
अधिकार, 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार, 4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार, 5. संस्कृति और शिक्षा
सम्बन्धी अधिकार, 6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
1. समानता का अधिकार
(अनुच्छेद 14-18)
1. अनुच्छेद 14 के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य किसी
भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
2. अनुच्छेद 15 के अनुसार, राज्य, किसी नागरिक के
विरुद्ध केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या
इनमें से किसी के आधार पर कोई
विभेद नहीं करेगा।
3. अनुच्छेद 16 के अनुसार, सब नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे
और इस सम्बन्ध में केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या
जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर सरकारी नौकरी या पद प्रदान करने में
भेदभाव नहीं किया जाएगा। 4. अनुच्छेद 17 में कहा गया है
कि “अस्पृश्यता का अन्त किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण
निषिद्ध किया जाता है। अस्पृश्यता से उत्पन्न किसी अयोग्यता को लागू
करना एक दण्डनीय
अपराध होगा।"
5. अनुच्छेद 18 में प्रावधान किया गया है कि “सेना अथवा विद्या सम्बन्धी उपाधियों के अलावा राज्य कोई
उपाधि प्रदान नहीं कर सकता। इसके साथ ही भारत का कोई नागरिक बिना राष्ट्रपति की
आज्ञा के विदेशी राज्य से भी कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।"
अलावा राज्य कोई
उपाधि प्रदान नहीं कर सकता। इसके साथ ही भारत का कोई नागरिक बिना राष्ट्रपति की
आज्ञा के विदेशी राज्य से भी कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।"
2. स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
1. मूल संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को सात
स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई थीं। अब सिर्फ छ: स्वतन्त्रताएँ हैं, जो निम्नलिखित हैं
(1) विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता।
(1) अस्त्र-शस्त्र रहित तथा शान्तिपूर्वक सम्मेलन की
स्वतन्त्रता।
(iin) समुदाय और संघ के निर्माण की स्वतन्त्रता।
(iv) भारत राज्य क्षेत्र में अबाध भ्रमण की स्वतन्त्रता।
(v) भारत राज्य क्षेत्र में अबाध निवास की स्वतन्त्रता।
(vi) वृत्ति, उपजीविका या
कारोबार की स्वतन्त्रता।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 तथा अनुच्छेद 24) –
1. अनुच्छेद 23 के द्वारा मानव
व्यापार तथा किसी भी व्यक्ति से बेगार या जबरदस्ती काम लेना गैरकानूनी घोषित
किया गया है।
2. अनुच्छेद 20 के अनुसार, किसी व्यक्ति को उस समय तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता जब तक कि उसने
अपराध के समय में लागू किसी कानून का उल्लंघन न किया हो। इसके साथ ही एक अपराध के
लिए किसी व्यक्ति को एक ही बार दण्ड दिया जा सकता है और किसी अपराध में अभियुक्त
व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा
सकता है।
3. अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी व्यक्ति को उसके जीवन तथा दैहिक स्वाधीनता से विधि द्वारा
स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर अन्य किसी प्रकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। 44वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार अब आपातकाल में भी जीवन और व्यक्तिगत
स्वतन्त्रता के अधिकार को समाप्त या सीमित नहीं किया जा सकता है।
4. अनुच्छेद 22 के अनुसार, बंदी बनाए गए व्यक्ति को उसके अपराध
अथवा बंदी बनाए जाने के कारणों को बतलाए बिना अधिक समय तक बंदीगृह में नहीं रखा जा
सकता। बंदी बनाए गए व्यक्ति को वकील से परामर्श करने और अपने बचाव के लिए प्रबन्ध
करने का अधिकार प्राप्त होगा। जिसे बंदी बनाया गया है, उसे 24 घन्टे के भीतर
निकटस्थ मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित करना आवश्यक होगा।
शोषण के विरुद्ध
अधिकार (अनुच्छेद 23 तथा अनुच्छेद 24) –
1. अनुच्छेद 23 के द्वारा मानव व्यापार
तथा किसी भी व्यक्ति से बेगार या जबरदस्ती काम लेना गैरकानूनी घोषित
किया गया है।
अपवाद राज्य
सार्वजनिक उद्देश्य से अनिवार्य श्रम की योजना लागू कर सकता है।
2. अनुच्छेद 24 के अनुसार, 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी
बच्चे को कारखानो, खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा
सकता है।
4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक)
1. अनुच्छेद 25 के अनुसार, सभी व्यक्तियों को अन्त:करण की स्वतन्त्रता तथा कोई भी धर्म अंगीकार
करने, उसका अनुसरण एवं प्रचार करने का अधिकार
प्राप्त होगा।
2. अनुच्छेद 26 के अनुसार ,प्रतेयक धर्म के अनुयायियों को
निम्नलिखित अधिकार प्रदान किए गए है
a. धार्मिक
सस्थाओ तथा दान से पोषित सार्वजानिक सेवा संस्थाओ की स्थापना तथा उनके संचालन का
अधिकार |
b. धर्म सम्बन्धी
निजी मामलो के प्रबंध का अधिकार
c. चाल और अचल
संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का अधिकार|
d. उक्त सम्पति
का विधि के अनुसार संचालन करने का अधिकार |
अनुच्छेद 27के अनुसार, राज्य किसी भी
व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय के उन्नति
या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई हो
4 अनुच्छेद 28 के अनुसार, राजकीय निधि से संचालित किसी भी शिक्षण संस्था में किसी
प्रकार की
धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी | इसके साथ ही राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त
व आर्थिक सहायता प्राप्त शिक्षण संस्था में किसी व्यक्ति को किसी धर्म विशेष की शिक्षा ग्रहण
करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा|
5. संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30)
1.
अनुच्छेद 29 के अनुसार, नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को अपनी
भाषा, लिपि या संस्कृति सुरक्षित रखने का पूर्ण
अधिकार प्राप्त है।
2.
अनुच्छेद 30 के अनुसार, धर्म या भाषा पर आधारित सभी
अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुनि की शैक्षणिक संस्थाओं की संस्थापना तथा उनके
प्रशासन का अधिकार होगा। राज्यआर्थिक सहायता देने में ऐसी संस्थाओं के साथ किसी
प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
» संविधान के भाग 3 में प्रत्याभूत मूल अधिकारों का यदि राज्य
द्वारा उल्लंघन किया जाये तो राज्य के विरुद्ध उपचार प्राप्त करने के लिए संविधान
के अनुच्छेद 32 के अधीन उच्चतम न्यायालय में तथा अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल करने के अधिकार
नागरिकों को प्रदान किये गये है।
लेख (Writs)
भारत के नागरिकों
के अधिकारों की रक्षा हेतु सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 39)व उच्च न्यायालयों (अनुच्छेद 226) को पांच प्रकार के लेख जारी करने का अधिकार है। ये लेख इस
प्रकार हैं:
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas corpus)
लैटिन भाषा के
शब्द 'हेबियस कॉरपस' का अर्थ है, “शरीर को हमारे समक्ष प्रस्तुत करो।" इसके द्वारा न्यायालय, बंदीकरण करने
वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित समय और स्थान
पर उपस्थित करे, जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर
सका न्यायालय इस बात का निर्णय करता है कि नजरबंदी वैध
है या अवैध और यदि न्यायालय को यह लगता है कि किसी व्यक्ति को अनुचित ढंग से बंदी
बनाया गया है, तो वह उसकी रिहाई का आदेश दे देता है।
2.परमादेश (Mandamus)
अंग्रेजी भाषा के शब्द 'मैन्डेमस' का अर्थ
है-आज्ञाः परमादेश का लेख (रिट) उस समय जारी किया जाता है जब कोई पदाधिकारी अपने
सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। इस प्रकार के आज्ञा-पत्र के आधार पर
पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है।
3.
प्रतिषेध (Prohibition)
प्रतिषेध का अर्थ
है-मना करना। जब कोई अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र
के बाहर जा रहा है अर्थात् कोई ऐसा कार्य कर रहा है, जो उसके अधिकार
क्षेत्र में न हो, तो उच्चतम या उच्च न्यायालय उसे ऐसा करने से रोक सकता
है। प्रतिषेध आदेश केवल न्यायिक प्राधिकारियों के विरुद्ध ही जारी किए जा सकते
हैं। प्रशासनिक कर्मचारियों के विरुद्ध नहीं।
4.
उत्प्रेषण (Certiorari)
उत्प्रेषण का
अर्थ है-और अधिक सूचित कीजिए। यह आज्ञापत्र अधिकांशत: किसी
विवाद को निम्न न्यायालय से उच्च न्यायालय में भेजने के लिए जारी किया जाता है, जिससे वह अपनी शक्ति से अधिक अधिकारों का उपयोग न करे या
अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए न्याय के प्राकृतिक सिद्धान्तों को भंग न करे। इस
आज्ञापत्र के आधार पर उच्च न्यायालय निम्न न्यायाधीशों से किन्हीं विवादों के
सम्बन्ध में सूचना प्राप्त कर सकते हैं।
5.
अधिकार-पच्छा (Ouo-warranto)
अधिकार-पच्छा का
अर्थ है-तम्हें क्या अधिकार है जब कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद को गैर कानूनी तरीके
से प्राप्त कर लेता है या गैर कानूनी तरीके से किसी पद पर बना रहता है, तो न्यायालय पूछ सकता है कि उसे उसके पद पर बने रहने का
क्या हक है?" और जब तक वह इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता।
मौलिक अधिकारों का निलंबन
मौलिक अधिकारों
का निलम्बन मौलिक अधिकारों का निलम्बन निम्न प्रकार से किया जा सकता है
1.मौलिक अधिकारों पर युक्तियुक्त निबंधन अधिरोपित किये जाने
के सन्दर्भ में अनुच्छेद 19(2) से 19(6) में उल्लेख किया
गया है।
2. अनुच्छेद 15(1) तथा (4) के अनुसार, सामाजिक उद्देश्यों
के प्रवर्तन; जैसे- महिलाओं, बच्चो
तथा पिछड़ी
जातियों के कल्याण के लिए राज्य मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप कर सकता है।
3. अनुच्छेद 34 के अनुसार, जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवर्तन में हो, तब ससंद विधि द्वारा मौलिक - अधिकारों पर निबंधन अधिरोपित
कर सकती है।
4. जब देश में अनुच्छेद 352 के अधीन
राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की गई हो, तब अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का स्वत: निलम्बन हो जाता है
और राष्ट्रपति अधिसूचना जारी करके मूल अधिकारों को समाप्त कर सकता है, लेकिन अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त अधिकार कभी भी समाप्त नहीं
किये जा सकते हैं।
5. संसद संविधान में संशोधन करके मौलिक अधिकारों को निलम्बित
कर सकती है, लेकिन ऐसा करते समय वह संविधान के मूल ढाँचे को नष्ट नहीं कर
सकती है।
मौलिक अधिकारों
में संशोधन
गोलकनाथ बनाम
पंजाब राज्य (1967 ई०) के निर्णय से पूर्व दिए गए निर्णयों में यह
निर्धारित किया गया था कि संविधान के किसी भी भाग में संशोधन किया जा सकता है, जिसमें अनुच्छेद 360 एक मूल अधिकार को
शामिल किया गया था। सवाच्च न्यायालय में गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्यवाद (1967ई०) के निर्णय में अनुच्छेद 368 निर्धारित
प्रक्रिया के माध्यम से मूल अधिकारों में संशोधन पर रोक लगा दी। अर्थात् संसद मूल
अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती है।
24वें संविधान संशोधन (1971 ई०) द्वारा
अनुच्छेद 13 और 368 में संशोधन किया
गया तथा यह निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद 368 में दी गई
प्रक्रिया द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
केशवानन्द भारती
बनाम केरल राज्यवाद के निर्णय में इस प्रकार के संशोधन को विधि मान्यता प्रदान की
गई अर्थात् गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के निर्णय को निरस्त कर दिया गया।
42वें संविधान संशोधन (1976 ई०) द्वारा
अनुच्छेद 368 में खंड 4 और 5 जोड़े गए तथा यह व्यवस्था की गई कि इस प्रकार किए गए संशोधन
को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है।
मिनर्वा मिल्स
बनाम भारत संघ (1980 ई०) के निर्णय के द्वारा यह निर्धारित किया गया कि
संविधान के आधारभूत लक्षणों की रक्षा करने का अधिकार न्यायालय को है और न्यायालय
इस आधार पर किसी भी संशोधन का पुनरावलोकन कर सकता है। इसके द्वारा 42वें संविधान संशोधन द्वारा की गई व्यवस्था को भी समाप्त कर
दिया गया।
विशिष्ट लक्षण (Special Features)
भारत के संविधान
द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के निम्नलिखित विशिष्ट लक्षण हैं।
1. यह अधिकार
साधारण कानून द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों की तुलना में अधिक पवित्र हैं क्योंकि
यह संविधान द्वारा प्राप्त किए गए हैं।
2. यह अधिकार असीमित नहीं हैं तथा उन पर उचित प्रतिबंध लगाए जा
3.इन अधिकारों को न्यायिक संरक्षण प्राप्त है तथा उन्हें
न्यायालयों के माध्यम से लागू कराया जा सकता है।
4.मौलिक अधिकारों को (जिनमें संवैधानिक संरक्षण का अधिकार भी
सम्मिलित है) राष्ट्रीय संकट के समय स्थगित किया जा सकता है।
5. संविधान द्वारा प्रदान किए गए कुछ अधिकार समाज के कुछ
वर्गों को । उपलब्ध नहीं हैं। उदाहरण के लिए सशस्त्र सेनाओं तथा पुलिस के सदस्यों
को राजनैतिक अधिकार उपलब्ध नहीं हैं।
6. ये अधिकतर केवल राज्य के विरुद्ध प्राप्त हैं तथा कुछ निजी
संस्था - अथवा व्यक्ति के विरुद्ध उपलब्ध नहीं, जैसे-अनुच्छेद-171
7. मौलिक अधिकार सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार के हैं।
वे अधिकार जो नागरिकों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान करते हैं सकारात्मक माने जाते
हैं जबकि अन्य अधिकार जो राज्य को विशेष सुविधाएं देने से रोकते हैं, नकारात्मक माने जाते हैं।
8. कुछ मौलिक अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त हैं जबकि
अन्य अधिकार विदेशियों और निगमों इत्यादि को भी प्राप्त हैं।
9. यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों का राज्य द्वारा हनन
किया जाता है तो उन्हें लागू कराने के लिए नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय के द्वार
खटखटा सकता है।
10. यदि किसी क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू हो, मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं।